एक रात की बात हैँ आँसमा के चाँद को शुकून से देख रहा था
बस देख रहा था कि चाँद को और चाँदनी रात हो गयी
और एक रात वह थी जो चाँद को देख रहा था पर शुकून नही था
आँखोँ मेँ आसुँ का एक कतरा भी नही था क्योकि दिल जो पहली वार टुटा उसके आँसु वह रहे थे
आँखोँ के आँसु आँखोँ मेँ दफन हो चुकी थी , हल्की ठंड हवाओँ के झोँके ऐँसा लग रहा था रुलाने के लिए मजबुर कर रही हैँ बेचार वह तुफान क्या जानता था कि जितनी तेज वह बह रहा हैँ उससे कहीँ तेज तुफान तो मेरे अंदर बह रहा था
थपेँडे थपेँडे पे थपेँडे हवा कि वह रहे थे धुलकन और मिट्टी के थपेँडे कह रही थी ऐँ राही तु लौट जा इतनी रात को तुफानी रात मेँ कहा चला जा रहा हैँ , लौट जा अपने घर ,, अपनी कोइ सुध ना थी तो हवा कि क्या सुनता बस कदम बढेँ जा रहे थेँ ,, बस कदम बढेँ जा रहेँ थे ,
कहाँ जाना हैँ ! कुछ पता नही
बस कदम बढेँ जा रहे जा रहे थे
बढनेँ के सिवा और भी कदम कर क्या सकतेँ थे , मंजिल पहले ही गुम हो गया था ,, अभी अभी दिखाई दे रहा था और अभी अभी मंजिल के टुकडे टुकडेँ दिल के टुकडोँ के साथ ढह चुका था ,,केवल एक शब्द से " कौन लगती हुँ ..मैँ तुम्हारी मुझे तुमसे कोइ मतलब नही ..कोइ वासता नही ...कोइ नाता हमारेँ बिच नही ! चले जाओ और दुबारा मुडकर इधर ना देखना " बस कानोँ मेँ वही शब्द गुँज रहे थे बार बार रिप्ले हो रहा था ।
ऐँसा कैसे कोइ कैसे कह सकता हैँ जिसके लिए कल तक उसका सबकुछ था आज कैसे बेगाना हो गया जो अपनी मंजिल मुझे मान रही थी जिसके सपनोँ का राजकुमार मैँ था जिसके हर दिन कि शुरुआत मुझे देखकर और हर रात मुझे चाँद जैसा देखकर गुजरती रही आज वो चाँदनी के लिए कैसे बेगाना हो सकता था !! तुफानी रात अपने चरम सिमा पर था और हमे कुछ खबर ना थी बस कदम अंधेरी रात मेँ चल रहे थे तभी अचानक एक काँटा चुभा जो अंदर तक धंस चुकी थी बस एक उफ की आवाज निकली आज भी याद था वह दिन जब पहली वार बगीचेँ मेँ काँटा चुभा था ! घर मेँ सभी परेसान थे मैँ दर्द से बेहाल था और एक आज का दिन था कि काँटे चुभेँ पर दर्द नही हुआ
पहले से क्या कम दर्द था जो ये काँटा बढाने आ गया दो कदम और चला था कि अचेत हो गिर गया ..अब कोइ मकसद ना ...कोइ मंजिल ना थी ....बस वही पडे पडे वह चाँद देख रहा था ..लग रहा था जैसे सबकुछ खत्म हो गया
कितने प्यारे यही चाँद लग रहा था जब मैने चाँदनी को देखा था ,,कितना अच्छा लग रहा था जब चाँदनी के साथ बैढकर चाँद को देखता था ..प्यार भी क्या चिज होती हैँ कितने सुहाने अनुभव देकर इतना बडा दर्द का भाग दे देता हैँ ..ऐँसे मे क्या कहा जायेँ
दुःख तो केवल बात का था कि काश कि मैँ उस रात ना देखता ....
काश कि उससे मुलाकात न होती
अब सबकुछ बिखर चुका था जिसे एक पल मुझे देखे चैँन नही आती थी आज उसने ऐसे मुह मोड लिया जैसे कि उसके लिए एक खिलौना भर था जब मन गया छोड दिया
कोइ उम्मीद नही दुबारा उठा और चल दिया हवाओँ के झोकेँ से गेँहु की दुधभरी बालिया लहलहा रही थी अभी दो कदम चला ना था कि फिर काँटोँ के गुच्छोँ पर पैर पडा और ऐसा लगा जैसे पुरा शरीर पानी बन गया ! वही मिट्टी की पगडंडी के राह पर दुबारा गिर गया .. काँटोँ से केवल इतनी शिकायत थी कि यह उस समय क्योँ नही चुभा जब चाँदनी से मिलने बेतहासा बेपरवाह चले जा रहा था ..ये तब क्योँ नही चुभा जब गुलाब का फुल लेकर अपने प्यार का इजहार करने जा रहा था ..
जेब से वही फुल निकालकर देखने लगा जिसे अपने प्यार का इजहार के तौर पर किसी को दिया आज वही फुल उसने मुह पे मार दि ...कितना प्यार किया था ...अपने आप से भी ज्यादा
फिर क्या कमी रह गयी थी जो इस नाजुक दिल को तोड दिया ..उसके लिए महज यह एक खेल रहा हो लेकिन मेरे लिए मेरी दुनिया थी ..उस सुखे गुलाब के र्सुख पत्तियाँ को देखकर एक बार फिर आँख भर आई और उस सुनसान गेँहु के खेतोँ के बिच कि पगडंडी पर से बहकर छोटे छोटे धास मेँ जाने लगी ..
दिल फिर से फफक फफक कर रोने लगा आँखोँ से बस आसुँ के बुंद के जगह चाँदनी के प्यार के अश्क धार बनकर बहने लगी
अपने आप को मिटा देना देना चाहता था ..अपने नाम इस दुनिया से खत्म कर देना चाहता था ..
खुब आँखो से आँसु बहे जी भरकर रोया ...सारे गम को आसुँ की नदिया से उसमेँ डुबा देना चाहता था ..मेरे मोहब्बत का शैलाब बडा था इसलिए गम भी बहुत बडा था इसे डुबा पाना संभव ना था लगभग रात का तीसरा पहर चल रहा था पास ही गीदड की रोने की आवाज लगी जैसे मेरे दुःख उसे भी सहन ना हो रहा हैँ मेरे गम को साथ मेँ रोकर बाँटना चाह रहा हो गम के आँसु रुकने का नाम न ले रहा था आखिरकार एक फैसला किया इस दुनिया को छोड देने का और पास मे एक बडी सुखी खाही थी जिसमे गिरकर कोइ भी इंसान जिँदा नही रहता .. एक पेड पर चढा ,, कुदने से पहले एक बार चाँद को देखा और आँखे बंद करके छलांग लगा दी ।
उसके बाद क्या हुआ कुछ पता नही
चाँद ढल गया और सुरज के किरनोँ ने आँख खोलने पर मजबुर कर दिया
मैने देखा मेरे कमर और हाथ लताओँ मेँ फंसा हैँ मैँ लटका हुँ खाही के पत्थर छुने को कुछ इंच बाकी रहे थे
मुझे जीवनदान इन लताओँ ने दिया उपर देखा तो लगा यह उसी पेड की करामत हैँ और वह मुझे देखकर मुस्कुरा रहा हैँ
उसे देखकर मुझे भी मुस्कुराहट आ गयी मेरे अंदर एक नयी शक्ति का संचार हुआ ।
कल रात क्या हुआ सब सपना लग रहा था सारेँ गम मिट गये एक नये आशा लिये चल दिया कि अब कुछ भी हो जाऐँ किसी से
मोहब्बत नही करना हैँ जिँदा रहकर नही मरना हैँ
उस दिन से मेरा हर दिन अच्छा गया क्योँकि अब कोइ कमी न थी अब कोइ गम ना था
और
जिँदगी भी कम ना था ।
........ वरुण कुमार